जिंदगी की शाम

जिंदगी की शाम


अपने कल को अपने हाथों दफना कर
आज उसी का स्वयं शोक मना रहा हूं मैं
पल पल खुद मर मर कर जिए जा रहा हूं मैं
कुछ इस तरह से जिंदगी बिता रहा हूं मैं।

जीने की आरजू सीने में ज़ज़्ब किए जा रहा हूं मैं
मुस्कुराने की नहीं कोई वजह आंसू छुपा रहा हूं मैं
ठुकरा दिया अपनों ने, गैरों को गले लगा रहा हूं मैं
कुछ इस तरह से जिंदगी बिता रहा हूं मैं।

अब नहीं कोई फर्क खुशी और गम के दरमियाँ
खुशी में आंसू, गमों में ठहाके लगा रहा हूं मैं
रिश्ते सब बोझ बन गए हैं पहल, बोझ गिरा रहा हूं मैं                    कुछ इस तरह से जिंदगी बिता रहा हूं मैं।।

आभार – नवीन पहल – ०३.०५.२०२३ 😔😔

# प्रतियोगिता हेतु 


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9 Comments

Ajay Tiwari

04-May-2023 09:20 AM

Very nice

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Abhinav ji

04-May-2023 08:50 AM

Very nice 👍

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Punam verma

04-May-2023 08:48 AM

Very nice

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